नर नारायण
सेवा संसथान
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नर नारायण सेवा संस्थान श्री श्री द्वारिकानाथ जी महाराज द्वारा स्थापित है। इस संस्थान के द्वारा समाज के वंचित वर्ग की सेवा एवं कई प्रकार के धार्मिक कर्मकांड का आयोजन किया जाता है।
प्रायः कर्मकाण्ड शब्द के सूक्ष्म विशलेषण से अनिभिग्ज्ञ सांसारिक व्यक्ति की दृष्टि में कर्मकाण्ड एक प्रकार का पाखण्ड होता है परन्तु इसमें सांसारिक का दोष नही है अपितु उस विषय पर लोगो की योग्यता के अभाव के कारण ऐसा चिन्तन स्वाभाविक है। जिस प्रकार से छोटे बालक को व्याकरण के सिद्धान्त समझ मे नही आते उसी प्रकार से सांसारिक जीवों को कर्मकाण्ड के सिद्धान्त समझ में नहीं आते। कर्मकाण्ड वह क्रिया समीकरण है जिस के द्वारा समस्त प्रकार की कामनाओं को सिद्ध किया जा सकता है आवश्यकता है उसे सही प्रयोग में लाने के गुण की।
विद्वानों के अनुसार वेद में कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड और ज्ञान काण्ड इन तीनों का वर्णन मिलता है। वेद में कुल एक लाख मंत्र हैं- चार हजार ज्ञान काण्ड के, सोलह हजार उपासना काण्ड के और सबसे ज्यादा अस्सी हजार कर्मकाण्ड के हैं। इसलिए कर्मकाण्ड को प्रधान स्थान प्राप्त है। इस प्रकार वेद के तीन भाग हैं। “तीन काण्ड एकत्व शान - वेद । वेद के कर्मकाण्ड भाग में यज्ञादि विविध अनुष्ठानों का विशेष रूप से वर्णन मिलता है अतः यज्ञ कर्मकाण्ड ही वेदों का मुख्य विषय है। वेदों का मुख्य विषय होने के कारण कर्मकाण्ड में मंत्रों का प्रयोग (उच्चारण) किया जाता है। वेद मंत्रों के बिना कर्मकाण्ड नहीं हो सकता और कर्मकाण्ड के बिना मंत्रों का ठीक-ठीक सदुपयोग नहीं हो सकता। अतः स्पष्ट है कि वेद हैं तो कर्मकाण्ड है और कर्मकाण्ड है तो वेद हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण (2/04) में वर्णन आता है वेदास्तु यज्ञार्थ मभिप्रवृत्ताः इस वचन से तथा भगवान मनु के दुदोह यज्ञ सिद्धयमि 1/23 इस वाक्य से स्पष्ट सिद्ध है कि वेदों का प्रादुर्भाव कर्मकाण्ड, यज्ञ, अनुष्ठान के लिए हुआ है। जिस प्रकार वेद दुरूह हैं उसी प्रकार वेदांग भूत कर्मकाण्ड भी अत्यंत दुरूह है। जिस प्रकार वेद में उपास्य देवता हैं उसी प्रकार कर्मकाण्ड में भी उपास्य देवता हैं। जिस प्रकार वेद किसी पुरुष के द्वारा न बनाया हुआ। नित्य और अनादि है- पराशर स्मृति में वर्णन आता है।